👩🏻🏫 लीलावती: भास्कराचार्य की पुत्री और भारत का अमर गणितीय ग्रंथ
भारतीय गणित के स्वर्ण युग में, एक महान गणितज्ञ भास्कराचार्य (भास्कर द्वितीय) ने "लीलावती" नामक एक अद्भुत ग्रंथ की रचना की। परंतु इस ग्रंथ का नाम केवल एक शास्त्र नहीं, बल्कि उनके जीवन की संवेदनशील कहानी और भावनाओं का प्रतिबिंब है। यह नाम उन्होंने अपनी बुद्धिमान पुत्री "लीलावती" के नाम पर रखा। यह लेख उसी लीलावती को समर्पित है – एक ऐसी कन्या जिसे पिता ने गणित की भाषा में अमरता दी।
🔷 लीलावती कौन थीं?
भास्कराचार्य की पुत्री लीलावती न केवल सुंदर थीं, बल्कि गणित में अत्यंत रुचि रखने वाली विदुषी भी थीं। एक जनश्रुति के अनुसार, जब उनकी शादी का शुभ मुहूर्त निकाला गया, तो यंत्र दोष के कारण विवाह विफल हो गया। इससे व्यथित होकर भास्कराचार्य ने उसे सांत्वना देने के लिए गणित के प्रश्नों को कविता के रूप में संगठित कर "लीलावती" नामक ग्रंथ रचा – जिससे वह ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ सके। यह ग्रंथ गणितीय प्रेम और पितृ-स्नेह का सुंदर संगम है।
📘 लीलावती ग्रंथ की विशेषताएँ
- 📜 काव्यात्मक शैली में रचित गणितीय प्रश्न
- 🧮 अंकगणित, भिन्न, अनुपात, समय-दूरी, वर्गमूल जैसे विषयों की सरल व्याख्या
- 🧠 बालकों एवं बालिकाओं को गणित में रुचि दिलाने हेतु रोचक भाषा
- 🌍 गणित को जीवन के अनुभवों से जोड़ने की अद्भुत कला
🧩 लीलावती ग्रंथ में वर्णित प्रमुख गणितीय सिद्धांत
1. समान्तर श्रेणी (Arithmetic Progression)
भास्कराचार्य ने समान्तर श्रेणी का योग इस सूत्र से समझाया:
S = (n/2)(a + l)
, जहाँ n पदों की संख्या, a पहला पद और l अंतिम पद है।
2. द्विघात समीकरण (Quadratic Equations)
जैसे: “एक संख्या को अपने आप से गुणा करो और उसमें से संख्या घटाओ, फल 6 आता है।”
यह समीकरण होगा: x² - x = 6
3. गति, समय और दूरी
उन्होंने स्पष्ट किया कि गति = दूरी ÷ समय। नाव, बैलगाड़ी जैसी दैनिक जीवन की परिस्थितियों द्वारा इसे समझाया गया।
4. भिन्नों की गणना
लीलावती में भिन्न जोड़ना, घटाना, गुणा और भाग को उदाहरणों द्वारा समझाया गया है।
5. अनुपात एवं समानुपात
यदि तीन व्यक्तियों ने 5:7:9 के अनुपात में धन बाँटा, तो उनके हिस्से उसी क्रम में होंगे।
6. वर्ग और वर्गमूल
भास्कराचार्य ने बताया कि √144 = 12 और यह कि जिन संख्याओं का पूर्ण वर्ग होता है, वे विशेष महत्व रखती हैं।
🔎 आधुनिक काल में लीलावती का महत्व
आज भी लीलावती ग्रंथ को भारत के विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सम्मानपूर्वक पढ़ाया जाता है। यह न केवल गणितीय शिक्षा का आधार है, बल्कि यह दिखाता है कि गणित को रोचक और भावनात्मक बनाया जा सकता है। हर वर्ष "लीलावती पुरस्कार" भारतीय महिला गणितज्ञों को प्रदान किया जाता है – यह लीलावती की स्मृति में एक अमिट श्रद्धांजलि है।
📌 निष्कर्ष
लीलावती केवल एक गणितीय ग्रंथ नहीं, बल्कि एक पिता की अपनी पुत्री के प्रति ममत्व और शिक्षा के प्रति समर्पण की अमर गाथा है। यह हमें यह सिखाता है कि गणित को भय नहीं, बल्कि प्रेम और कविता से भी पढ़ाया जा सकता है।
✍️ यह लेख "भारत के वैज्ञानिक रत्न" श्रृंखला का हिस्सा है। अगले लेख में हम "आर्यभट्ट" या "वराहमिहिर" जैसे महान भारतीय गणितज्ञों और खगोलविदों पर चर्चा करेंगे।
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