- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
संदेश
रेडियो टेलीस्कोप्स: इतिहास, निर्माण और ISRO की उपलब्धियां
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
रेडियो टेलीस्कोप्स: इतिहास, निर्माण और ISRO की उपलब्धियां 1. परिचय रेडियो टेलीस्कोप्स खगोल विज्ञान का एक अभिन्न हिस्सा हैं। ये उपकरण रेडियो तरंगों को कैप्चर कर हमें ब्रह्मांडीय घटनाओं को समझने का अवसर देते हैं। भौतिकी, खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्रों में रेडियो टेलीस्कोप्स ने नई क्रांतियां लाई हैं। भारत में, ISRO ने इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 2. इतिहास रेडियो खगोल विज्ञान की शुरुआत 1932 में हुई, जब अमेरिकी वैज्ञानिक कार्ल जान्स्की ने पहली बार ब्रह्मांडीय रेडियो तरंगों की खोज की। 1937 में ग्रोते रेबेर ने पहला रेडियो टेलीस्कोप बनाया। 2.1 रेडियो टेलीस्कोप्स का प्रारंभिक उपयोग प्रारंभिक रेडियो टेलीस्कोप्स का उपयोग सूर्य, आकाशगंगा और अन्य खगोलीय पिंडों से आने वाली रेडियो तरंगों का अध्ययन करने के लिए किया गया था। इनकी मदद से खगोल विज्ञान में कई नई खोजें की गईं, जैसे कि पल्सर और क्वासर । 2.2 ISRO का प्रारंभिक योगदान भारत में खगोल विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए ISRO ने भारतीय रेडियो खगोल विज्ञान वेधशाला (GMRT) की स्थापना ...
भूकंप: विज्ञान और बचाव तकनीक
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
भूकंप: विज्ञान और बचाव तकनीक परिचय भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है जो पृथ्वी की सतह में अचानक ऊर्जा के रिलीज के कारण होती है। यह ऊर्जा का प्रसार पृथ्वी के अंदर स्थित टेक्टोनिक प्लेटों के आपसी टकराव, घर्षण, या विस्थापन के कारण होता है। भूकंप के दौरान जमीन में कंपन होते हैं, जो इमारतों को ध्वस्त कर सकते हैं, सड़कों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, और जानमाल की भारी हानि कर सकते हैं। भूकंप का विज्ञान भूकंप मुख्य रूप से पृथ्वी की बाहरी परत, जिसे क्रस्ट कहते हैं, के अंदर घटित होते हैं। जब पृथ्वी के नीचे की टेक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं या एक-दूसरे से दूर जाती हैं, तो इस प्रक्रिया में दबाव और तनाव बनता है। जब यह दबाव सीमा से अधिक बढ़ता है, तो अचानक ऊर्जा का विस्फोट होता है, जिससे भूकंप के झटके पैदा होते हैं। एपिसेंटर और फोकस भूकंप का केंद्र पृथ्वी के अंदर होता है, जिसे फोकस कहा जाता है। एपिसेंटर वह स्थान होता है, जो पृथ्वी की सतह पर फोकस के ठीक ऊपर स्थित होता है। यह स्थान सबसे अधिक प्रभावित होता है। सिस्मिक वेव्स भू...
ग्रहण: सूर्य और चंद्र ग्रहण
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
ग्रहण: खगोलीय घटना, इतिहास और विज्ञान ग्रहण: खगोलीय घटना, इतिहास और विज्ञान ग्रहण एक ऐसी खगोलीय घटना है जो सौर मंडल की गतियों को समझने का अवसर प्रदान करती है। यह घटना न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी इसका विशेष स्थान है। 1. सूर्य ग्रहण जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आता है और सूर्य की रोशनी पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाती, तो इसे सूर्य ग्रहण कहते हैं। सूर्य ग्रहण के प्रकार: पूर्ण सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य को ढक लेता है। आंशिक सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा केवल सूर्य का एक हिस्सा ढकता है। कंकणाकार सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य के बीच में आता है लेकिन उसका आकार छोटा होने के कारण सूर्य का किनारा दिखता है। चित्र: सूर्य ग्रहण का दृश्य क्या आप जानते हैं? 1868 में सूर्य ग्रहण के दौरान हीलियम तत्व की खोज की गई थी! ...
बरनौली का सिद्धांत: एक गहन विश्लेषण
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
बरनौली का सिद्धांत: एक गहन विश्लेषण परिचय: बरनौली का सिद्धांत (Bernoulli's Principle) फ्लूड डायनेमिक्स का एक मौलिक सिद्धांत है, जो द्रव (तरल या गैस) के प्रवाह में ऊर्जा के संरक्षण को समझाता है। 1738 में डैनियल बरनौली द्वारा प्रस्तुत इस सिद्धांत ने विज्ञान और इंजीनियरिंग में नई दिशा दी। यह सिद्धांत हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रवाहित द्रव के वेग, दाब और ऊंचाई के बीच संबंध कैसे कार्य करता है। बरनौली का समीकरण बरनौली का समीकरण द्रव के ऊर्जा संतुलन का वर्णन करता है। इसे निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है: जहां: P : द्रव का स्थिर दाब (Static Pressure) ρ (rho): द्रव का घनत्व (Density) v : द्रव का वेग (Velocity) g : गुरुत्वीय त्वरण (Acceleration due to gravity) h : ऊंचाई (Height above a reference point) सिद्धांत का विस्तृत विश्लेषण बरनौली का सिद्धांत निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है: द्रव अ...
उल्का वर्षा: विज्ञान, गणित और खगोलशास्त्र
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
उल्का वर्षा: विज्ञान, गणित और खगोलशास्त्र उल्का वर्षा: विज्ञान, गणित और खगोलशास्त्र उल्का वर्षा खगोलशास्त्र की सबसे सुंदर घटनाओं में से एक है। यह घटना तब होती है जब पृथ्वी के वायुमंडल में अंतरिक्षीय मलबा प्रवेश करता है। इस लेख में हम उल्का वर्षा के विज्ञान, गणितीय समीकरण, ऐतिहासिक महत्व और खगोलशास्त्र में इसके उपयोग का अध्ययन करेंगे। उल्का वर्षा क्या है? उल्का वर्षा एक खगोलीय घटना है जिसमें अंतरिक्षीय धूल, पत्थर, और मलबा पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है। वायुमंडल के घर्षण के कारण ये जलने लगते हैं, जिससे चमकीली रेखाएं बनती हैं जिन्हें उल्का कहते हैं। महत्वपूर्ण: जब कोई उल्का पृथ्वी की सतह तक पहुँचता है, तो उसे उल्कापिंड कहा जाता है। गणितीय आधार उल्का की गति और ऊर्जा की गणना महत्वपूर्ण है। जब उल्का वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो इसकी गतिक ऊर्जा को निम्न समीकरण से व्यक्त किया जा सकता है: गतिक ऊर्जा (Kinetic Energy): KE = 1/2 mv² ...
सौर मंडल के बाहर की दुनिया
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
सौर मंडल के बाहर की दुनिया (Exoplanets और अन्य Systems) - STEM हिंदी सौर मंडल के बाहर की दुनिया (Exoplanets और अन्य Systems) क्या आपने कभी कल्पना की है कि हमारे सौर मंडल से परे ब्रह्मांड में जीवन की संभावनाएँ कैसी हो सकती हैं? पिछले कुछ दशकों में, विज्ञान और तकनीकी प्रगति ने हमें ब्रह्मांड के इन रहस्यमयी हिस्सों की खोज करने में सक्षम बनाया है। इन ग्रहों को एक्सोप्लैनेट्स कहा जाता है। यह लेख आपको एक्सोप्लैनेट्स, उनकी खोज, और सौर मंडल के बाहर की दुनिया के रोमांचक पहलुओं से अवगत कराएगा। एक्सोप्लैनेट क्या हैं? एक्सोप्लैनेट्स ऐसे ग्रह होते हैं जो हमारे सौर मंडल से बाहर स्थित हैं और किसी अन्य सितारे की परिक्रमा करते हैं। इन ग्रहों को पहली बार 1990 के दशक में खोजा गया था। तब से, वैज्ञानिकों ने हजारों एक्सोप्लैनेट्स की पहचान की है। ये ग्रह अपने आकार, संरचना, और अपने वातावरण के आधार पर विविध होते हैं। जिन ग्रहों का द्रव्यमान पृथ्वी के समान है, वे पृथ्वी जैसे ग्रह कहलाते हैं। कुछ ग्रह गैस के विश...
वर्महोल: अंतरिक्ष और समय की सुरंगें
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
वर्महोल: अंतरिक्ष और समय की सुरंगें क्या आपने कभी सोचा है कि क्या हम अंतरिक्ष और समय में यात्रा कर सकते हैं? वर्महोल , जिसे "Einstein-Rosen Bridge" भी कहा जाता है, इस सवाल का संभावित उत्तर हो सकता है। यह एक काल्पनिक संरचना है जो अंतरिक्ष और समय के बीच एक शॉर्टकट प्रदान कर सकती है। इस लेख में, हम वर्महोल के सिद्धांत, इतिहास, वैज्ञानिक योगदान और उपयोगों को समझेंगे। वर्महोल क्या हैं? वर्महोल अंतरिक्ष-समय में एक प्रकार की सुरंग होती है जो दो दूरस्थ स्थानों को जोड़ती है। इसका आधार आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत (General Relativity) पर आधारित है। इसे सरल शब्दों में इस प्रकार समझ सकते हैं: यदि अंतरिक्ष को एक चादर की तरह समझा जाए और आप इसमें दो बिंदु जोड़ना चाहें, तो वर्महोल एक शॉर्टकट के रूप में काम करेगा। वर्महोल का इतिहास वर्महोल का सिद्धांत 20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में उभरा। आइए जानते हैं इसके पीछे के प्रमुख वैज्ञानिकों और उनके योगदानों के बारे में: अल्बर्ट आइंस्टीन और नाथन रोसन (1935): इन दोनों वैज्ञानिकों ने मिलक...
न्यूट्रॉन तारे (Neutron Stars): ब्रह्मांड के अद्भुत खजाने
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप

न्यूट्रॉन तारे (Neutron Stars): ब्रह्मांड के अद्भुत खजाने ब्रह्मांड में कई ऐसे रहस्यमय पिंड हैं, जो हमारी समझ से परे लगते हैं। न्यूट्रॉन तारे (Neutron Stars) इनमें से सबसे अद्भुत और गहन रहस्यपूर्ण पिंड हैं। इन तारों का निर्माण विशाल तारों के जीवन के अंत में होता है और ये अपनी घनत्व, चुंबकीय शक्ति, और तीव्र घूर्णन के लिए प्रसिद्ध हैं। इस लेख में, हम न्यूट्रॉन तारों के निर्माण, संरचना, और विशेषताओं को समझने के साथ-साथ उनके वैज्ञानिक महत्व पर भी चर्चा करेंगे। न्यूट्रॉन तारे कैसे बनते हैं? न्यूट्रॉन तारे विशाल तारों के जीवन के अंत में सुपरनोवा विस्फोट के परिणामस्वरूप बनते हैं। जब किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 8-20 गुना अधिक होता है, तो इसका कोर ढह जाता है। इस प्रक्रिया में, प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन मिलकर न्यूट्रॉन बनाते हैं, और तारे का कोर न्यूट्रॉन तारों के रूप में सिकुड़ जाता है। न्यूट्रॉन तारों का निर्माण ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली घटनाओं में से एक है। सुपरनोवा विस्फोट में तारे की बाहरी परतें अंतरिक्ष में बिखर जाती हैं, और बचा हुआ कोर...
ब्लैक होल: ब्रह्मांड के अनसुलझे रहस्य
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
ब्लैक होल: ब्रह्मांड के अनसुलझे रहस्य जब हम ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमय और चौंकाने वाले पहलुओं की बात करते हैं, तो ब्लैक होल का नाम सबसे पहले आता है। यह ऐसा खगोलीय पिंड है जिसे वैज्ञानिकों ने कल्पना और गणनाओं के माध्यम से समझा, और आज यह हमारी ब्रह्मांडीय समझ का केंद्र बन चुका है। ब्लैक होल केवल विज्ञान का एक हिस्सा नहीं हैं; यह हमारी जिज्ञासा, डर और रोमांच का प्रतीक भी हैं। ब्लैक होल: एक परिचय ब्लैक होल ब्रह्मांड के ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ गुरुत्वाकर्षण इतना तीव्र होता है कि यह हर चीज़ को, यहाँ तक कि प्रकाश को भी, अपने अंदर खींच लेता है। इसे "अंतरिक्ष का अंधकार" भी कहा जाता है। ब्लैक होल की कल्पना 18वीं शताब्दी में जॉन मिशेल और पियरे-लाप्लास ने की थी, लेकिन इसका गणितीय आधार अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत (General Relativity) ने 1915 में दिया। ब्लैक होल को समझना ऐसा है जैसे किसी खिड़की से ब्रह्मांड के अज्ञात आयामों में झाँकना। यह वह जगह है जहाँ विज्ञान और दर्शन का मिलन होता है। ब्लैक होल का निर्माण: अनंत शक्ति का स्रोत ब्लैक होल तब बनते ह...
प्लूटो: सौर मंडल का रहस्यमय बौना ग्रह
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
प्लूटो: सौर मंडल का रहस्यमय बौना ग्रह प्लूटो (Pluto) हमारे सौर मंडल का सबसे रहस्यमय और अनोखा खगोलीय पिंड है। इसे पहले सौर मंडल का नौवां ग्रह माना जाता था, लेकिन 2006 में अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने इसे "बौना ग्रह" (Dwarf Planet) की श्रेणी में डाल दिया। इस ग्रह का नाम रोमन पौराणिक कथाओं के अंधकार और मृत्युदेवता प्लूटो के नाम पर रखा गया है। प्लूटो का इतिहास और खोज प्लूटो की खोज 1930 में अमेरिकी खगोलशास्त्री क्लाइड टॉमबॉ (Clyde Tombaugh) ने की थी। इसे "प्लैनेट X" की तलाश के दौरान खोजा गया था। खोज के समय इसे ग्रह का दर्जा मिला, लेकिन 76 साल बाद यह विवाद का विषय बन गया और इसे "बौना ग्रह" कहा गया। प्लूटो का आकार और संरचना प्लूटो का व्यास लगभग 2,377 किलोमीटर है, जो चंद्रमा से भी छोटा है। इसकी सतह जमी हुई नाइट्रोजन, मिथेन और पानी की बर्फ से बनी है। माना जाता है कि इसके आंतरिक भाग में पत्थर और बर्फ का मिश्रण है। प्लूटो की सतह प्लूटो की सतह पर कई रहस्यमयी विशेषताएँ हैं, जैसे कि सपु...
नेपच्यून: नीले जायंट ग्रह की अद्भुत दुनिया
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप

नेपच्यून: नीले जायंट ग्रह की अद्भुत दुनिया नेपच्यून (Neptune) सौर मंडल का आठवां और सबसे दूरस्थ ग्रह है। इसे "ब्लू जायंट" या "नीला विशाल" कहा जाता है, क्योंकि इसका रंग गहरे नीले रंग का है। यह ग्रह अपने तीव्र तूफानों, विशालकाय वायुमंडल, और अद्भुत कक्षीय विशेषताओं के लिए जाना जाता है। नेपच्यून की खोज और इसके बारे में जानकारी ने खगोलशास्त्र की दुनिया को समृद्ध किया है। इस लेख में हम नेपच्यून के बारे में हर महत्वपूर्ण पहलू पर चर्चा करेंगे। नेपच्यून की खोज और नामकरण नेपच्यून की खोज 1846 में जोहान गैले ने की थी। यह ग्रह खगोल गणनाओं के माध्यम से पाया गया पहला ग्रह है। गणनाओं में अनियमितताओं के आधार पर वैज्ञानिकों ने इसकी स्थिति का अनुमान लगाया। इसका नाम रोमन समुद्र देवता "नेपच्यून" के नाम पर रखा गया, जो इसकी गहरे नीले रंग और रहस्यमयता को दर्शाता है। भौतिक विशेषताएं विशेषता मूल्य द्रव्यमान (Mass) 1.024 × 10 26 किग्रा ...
यूरेनस: बर्फीले जायंट ग्रह की अद्भुत दुनिया
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप

यूरेनस: बर्फीले जायंट ग्रह की अद्भुत दुनिया यूरेनस (Uranus) सौर मंडल का सातवां ग्रह है और इसे "आइस जायंट" के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह अपने अनोखे झुके हुए अक्ष और हल्के नीले-हरे रंग के कारण खगोलशास्त्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रह है। यह ग्रह पृथ्वी से लगभग 2.9 बिलियन किलोमीटर दूर है और यह सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा पूरी करने में 84 पृथ्वी वर्षों का समय लेता है। यूरेनस की खोज और विशेषताओं पर यह लेख विस्तार से चर्चा करता है। यूरेनस की खोज और नामकरण यूरेनस की खोज 1781 में विलियम हर्शल ने की थी। यह दूरबीन की मदद से खोजा गया पहला ग्रह था। हालांकि पहले इसे एक तारे के रूप में देखा गया था, बाद में यह समझा गया कि यह एक ग्रह है। इसका नाम "यूरेनस" रखा गया, जो ग्रीक पौराणिक कथाओं के आकाश के देवता "ओरानोस" से लिया गया है। भौतिक विशेषताएं विशेषता मूल्य द्रव्यमान (Mass) 8.681 × 10 25 किग्रा औसत घनत्व...
शनि ग्रह: सौर मंडल का छल्लेदार अजूबा
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप

शनि ग्रह: सौर मंडल का छल्लेदार अजूबा शनि (Saturn) सौर मंडल का छठा ग्रह है और इसका नाम रोमन पौराणिक कथाओं के कृषि और धन के देवता "सैटर्न" के नाम पर रखा गया है। यह अपनी खूबसूरत छल्लेदार संरचना और विशालता के लिए प्रसिद्ध है। शनि को "गैस जायंट" की श्रेणी में रखा गया है, और यह हमारे सौर मंडल के सबसे हल्के ग्रहों में से एक है। इस लेख में शनि ग्रह के बारे में हर वह जानकारी दी गई है जो खगोल विज्ञान के शौकीनों और छात्रों के लिए उपयोगी हो सकती है। शनि ग्रह की खोज और इतिहास शनि प्राचीन काल से ही मानव जाति के लिए रुचि का विषय रहा है। इसे बिना टेलिस्कोप के भी नग्न आंखों से देखा जा सकता है। 1610 में गैलीलियो गैलिली ने इसे पहली बार टेलिस्कोप के माध्यम से देखा। हालांकि, उनके टेलिस्कोप की सीमित क्षमता के कारण, वे इसके छल्लों को स्पष्ट रूप से समझ नहीं सके। 1655 में क्रिश्चियन ह्यूजेन्स ने बेहतर टेलिस्कोप का उपयोग करके शनि के छल्लों और इसके सबसे बड़े चंद्रमा "टाइटन" की खोज की। भौतिक विशेषताएं शनि ग्र...
बृहस्पति ग्रह: सौर मंडल का सबसे बड़ा और रहस्यमय ग्रह
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
बृहस्पति ग्रह: सौर मंडल का सबसे बड़ा और रहस्यमय ग्रह बृहस्पति ग्रह, जिसे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह कहा जाता है, अपने विशाल आकार और अद्वितीय विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। यह खगोलविदों और वैज्ञानिकों के लिए शोध का मुख्य केंद्र रहा है। गैस जायंट के रूप में जाने जाने वाले इस ग्रह के पास एक अद्भुत चुंबकीय क्षेत्र, सैकड़ों उपग्रह, और रहस्यमय वातावरण है। बृहस्पति का भौतिक विवरण बृहस्पति ग्रह के भौतिक गुण इसे अन्य ग्रहों से अलग बनाते हैं। नीचे दी गई तालिका में बृहस्पति के कुछ महत्वपूर्ण भौतिक आंकड़े दिए गए हैं: विशेषता मूल्य द्रव्यमान (Mass) 1.898 × 10 27 किग्रा औसत घनत्व (Density) 1.33 ग्राम/सेमी 3 गुरुत्वाकर्षण (Gravity) 24.79 मीटर/सेकंड 2 कक्षीय गति (Orbital Speed) 13.07 किमी/सेकंड औसत दूरी सूर्य से (Distance from Sun) 778.5 मिलियन किमी ...
क्षुद्रग्रह: सौरमंडल के रहस्यमय पथिक
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
क्षुद्रग्रह: सौरमंडल के रहस्यमय पथिक क्षुद्रग्रह (Asteroids) सौरमंडल के ऐसे पथिक हैं, जो ग्रहों के आकार से छोटे होते हैं और मुख्य रूप से मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित "क्षुद्रग्रह पट्टी" (Asteroid Belt) में पाए जाते हैं। हालांकि, कुछ क्षुद्रग्रह सौरमंडल के अन्य हिस्सों में भी घूमते हैं। आइए, जानते हैं क्षुद्रग्रह के बारे में अधिक जानकारी। क्षुद्रग्रह की संरचना क्षुद्रग्रह का आकार सामान्यतः छोटा होता है और यह कई प्रकार की संरचनाओं में हो सकते हैं, जैसे: धार्मिक आकार: कुछ क्षुद्रग्रह आकार में गोल होते हैं। अनियमित आकार: कुछ क्षुद्रग्रह बहुत असमान आकार के होते हैं। संगठित संरचना: कुछ क्षुद्रग्रहों में कई छोटे खंड होते हैं, जो एक साथ घूमते हैं। क्षुद्रग्रह पट्टी क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित "क्षुद्रग्रह पट्टी" में पाए जाते हैं। यह क्षेत्र सौरमंडल का एक प्रमुख हिस्सा है और यहां लाखों की संख्या में क्षुद्रग्रह स्थित हैं। हालांकि, इनका आकार आमतौर पर बहुत छोटा होता है, लेकिन कु...
मंगल ग्रह: जीवन की संभावना और रहस्यों का अद्भुत ग्रह
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
मंगल ग्रह: जीवन की संभावना और रहस्यों का अद्भुत ग्रह मंगल ग्रह (Mars), सौरमंडल का चौथा ग्रह है और इसे "लाल ग्रह" भी कहा जाता है। इसका नाम प्राचीन रोमन युद्ध के देवता मंगल के नाम पर रखा गया है। मंगल ग्रह की सतह पर लाल रंग के खनिज (आयरन ऑक्साइड) की अधिकता के कारण इसे "लाल ग्रह" के नाम से जाना जाता है। आइए, मंगल ग्रह के बारे में विस्तार से जानें। मंगल ग्रह की संरचना मंगल ग्रह की संरचना और आकार पृथ्वी से काफी अलग है, लेकिन इसकी सतह पर जीवन के संकेतों की संभावना को लेकर वैज्ञानिक उत्साहित हैं। मंगल की संरचना में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं: व्यास: लगभग 6,779 किमी, जो पृथ्वी के व्यास से लगभग आधा है। वजन: मंगल ग्रह का वजन पृथ्वी के मुकाबले केवल 10.7% है। पर्पटी: मंगल की सतह पर आयरन ऑक्साइड के कारण लाल रंग की झलक दिखाई देती है। मंगल ग्रह का वातावरण मंगल का वातावरण पृथ्वी के मुकाबले बहुत पतला है और इसमें मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (95%) और नाइट्रोजन (2.7%) शामिल है। वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत...