🔬 भारत के वैज्ञानिक रत्न: भास्कराचार्य (Bhaskaracharya)
भास्कराचार्य, जिन्हें भास्कर द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय गणित और खगोल विज्ञान के इतिहास के सबसे महान विद्वानों में से एक थे। उनका जन्म 1114 ईस्वी में भारत के महाराष्ट्र राज्य के बीजापुर जिले में हुआ था। उन्होंने अपने जीवनकाल में गणित, खगोलशास्त्र और ज्यामिति के क्षेत्र में अनेक अद्भुत कार्य किए, जो आज भी आधुनिक विज्ञान को प्रेरित करते हैं।
📚 प्रमुख रचनाएँ
भास्कराचार्य की सबसे प्रसिद्ध रचना है ‘सिद्धांत शिरोमणि’, जो चार खंडों में विभाजित है:
- लीलावती: अंकगणित की पुस्तक
- बीजगणित: समीकरणों और जड़ों की गणना
- गोलाध्याय: खगोलशास्त्र का अध्ययन
- ग्रहगणित: ग्रहों की गति का गणितीय विश्लेषण
इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘करण कुतूहल’ नामक एक और प्रसिद्ध खगोलशास्त्रीय ग्रंथ भी लिखा।
🧮 लीलावती: गणित को सरल बनाना
लीलावती उनकी बेटी का नाम था, और इस पुस्तक में भास्कराचार्य ने गणितीय सिद्धांतों को बहुत ही सरल और आकर्षक भाषा में प्रस्तुत किया। इस ग्रंथ में अंकगणित के साथ-साथ अनुपात, क्षेत्रफल, आयतन, समीकरण, गुणा-भाग की जटिल विधियों को सहजता से समझाया गया है।
लीलावती ग्रंथ की शैली इतनी रोचक थी कि इसे "कविता के रूप में गणित" कहा जाता है। उदाहरण के लिए, एक प्रश्न इस प्रकार दिया गया है:
"हे लीलावती, यदि कोई बकरी प्रतिदिन 2 द्रोण घास खाती है, तो बताओ 8 बकरियों के लिए 12 दिनों तक कितनी घास की आवश्यकता होगी?"
🌌 खगोल विज्ञान में योगदान
भास्कराचार्य ने पृथ्वी के घूर्णन, ग्रहों की गति, सौर और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी आदि में अद्वितीय कार्य किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया कि:
- पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है।
- ग्रहों की कक्षा दीर्घवृत्तीय (Elliptical) होती है।
- समय की माप और कालगणना में त्रुटियों को कैसे सुधारा जा सकता है।
उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का भी उल्लेख किया था, जिसे पश्चिमी जगत में न्यूटन से पहले शायद ही कोई जानता था।
🔢 बीजगणित और कलन शास्त्र
भास्कराचार्य ने कलन (Calculus) के कुछ सिद्धांतों का प्रयोग किया, जैसे:
- गति का विभेदन (Differentiation)
- गति का समाकलन (Integration)
- संभाव्य त्रुटियाँ और उनके सुधार
यह ध्यान देने योग्य है कि ये अवधारणाएँ उन्होंने 500 वर्ष पहले लिखी थीं, इससे पहले कि न्यूटन और लाइबनिट्ज ने कलन के नियम दिए।
🌍 वैश्विक प्रभाव
भास्कराचार्य के कार्यों का प्रभाव भारत तक ही सीमित नहीं रहा। उनकी रचनाओं का अनुवाद फारसी, अरबी और लैटिन भाषा में हुआ और इससे यूरोप के गणितज्ञों को भी दिशा मिली।
👨👧 पिता के रूप में
भास्कराचार्य ने अपनी पुत्री लीलावती को भी गणित में पारंगत बनाया। यह उदाहरण दर्शाता है कि वे महिलाओं की शिक्षा को भी महत्व देते थे, जो उस समय के लिए दुर्लभ था।
🕯️ निष्कर्ष
भास्कराचार्य का जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि भारतीय विद्वान विज्ञान और गणित के क्षेत्र में कितने आगे थे। उनकी विरासत आज भी हमारे शिक्षण संस्थानों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
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