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डॉ. सलीम अली – भारत के पक्षी पुरुष

डॉ. सलीम अली (1896–1987), जिन्हें सामान्यतः "भारतीय पक्षी विज्ञान के जनक" कहा जाता है, भारत के उन विरले वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने पक्षियों के गूढ़ संसार को न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा, बल्कि आमजन तक इसकी सुंदरता और महत्ता को पहुँचाया। वे केवल एक वैज्ञानिक नहीं, बल्कि एक प्रकृति प्रेमी, संरक्षणवादी और भारत में बायोडायवर्सिटी अध्ययन के अग्रदूत थे।

प्रारंभिक जीवन

सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली का जन्म 12 नवम्बर 1896 को मुंबई में हुआ। बहुत कम उम्र में उन्होंने अपने चाचा के साथ मिलकर पक्षियों में रुचि दिखाना शुरू किया। एक बार उन्होंने एक पीली गर्दन वाला चिड़ा देखा और उसे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) में पहचान के लिए ले गए। यही घटना उनके जीवन की दिशा तय कर गई।

शिक्षा और प्रशिक्षण

उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक किया और बाद में जर्मनी के बर्लिन में प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक Erwin Stresemann के अधीन प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह समय उनके पक्षीविज्ञान करियर की नींव साबित हुआ।

भारत में पक्षीविज्ञान का प्रारंभ

सलीम अली ने भारत के विभिन्न हिस्सों में पक्षियों का गहन अध्ययन किया और डेटा संग्रह किया। उन्होंने पक्षियों की प्रजातियों, उनके व्यवहार, प्रवास, और पारिस्थितिकी तंत्र पर शोध किए। उनकी पुस्तकें जैसे "The Book of Indian Birds" और "Handbook of the Birds of India and Pakistan" आज भी संदर्भ मानी जाती हैं।

प्राकृतिक संरक्षण और सामाजिक योगदान

सलीम अली ने केवल वैज्ञानिक अध्ययन ही नहीं किया, बल्कि जंगलों और जैव विविधता की रक्षा के लिए आवाज भी उठाई। उनके प्रयासों से भारत में कई राष्ट्रीय उद्यानों और पक्षी अभयारण्यों की स्थापना हुई। साइलेंटी वैली जैसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक क्षेत्रों को संरक्षित करने में उनकी भूमिका ऐतिहासिक रही।

सम्मान और पुरस्कार

डॉ. सलीम अली को उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। उन्हें 1958 में पद्म भूषण और 1976 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उनके नाम पर स्थापित "सलीम अली पक्षी अभयारण्य" गोवा और "सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री" कोयंबटूर में स्थित है।

भारत को मिली दिशा

डॉ. सलीम अली ने भारत में पक्षीविज्ञान को एक गंभीर वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में स्थापित किया। उन्होंने यह साबित किया कि पक्षी अध्ययन केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि पारिस्थितिकी और पर्यावरण संतुलन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

निजी जीवन और दृष्टिकोण

हालाँकि वे एक मुस्लिम परिवार से थे, लेकिन उनका जीवन प्रकृति के प्रति एक आध्यात्मिक समर्पण की तरह था। वे हर धर्म और संस्कृति में प्रकृति के संरक्षण की भावना को मानते थे। उन्होंने जीवन भर वैवाहिक जीवन नहीं अपनाया और अपने काम को ही अपना धर्म मानते रहे।

निष्कर्ष

डॉ. सलीम अली का जीवन एक प्रेरणा है कि किस प्रकार एक व्यक्ति केवल अपने समर्पण और जुनून के बल पर पूरे देश को एक नई दृष्टि दे सकता है। आज के समय में जब जैव विविधता संकट में है, तो डॉ. सलीम अली का कार्य और विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।


👉 यह लेख "भारत के वैज्ञानिक रत्न" श्रृंखला का एक भाग है, जिसमें हम उन महान भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान को प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्होंने विज्ञान की रोशनी से देश और दुनिया को मार्ग दिखाया।

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