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ISRO के लॉन्च व्हीकल्स: SLV (Satellite Launch Vehicle) का रोमांचक सफर

ISRO के लॉन्च व्हीकल्स: SLV (Satellite Launch Vehicle) का रोमांचक सफर

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ISRO SLV Rocket

परिचय

1970 के दशक में भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में कदम रखा। अपने पहले उपग्रह आर्यभट्ट के साथ अंतरिक्ष में प्रवेश का सपना देखा, जिसे 19 अप्रैल 1975 को सोवियत यूनियन के Kosmos-3M रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया। इसी समय ISRO ने अपना पहला स्वदेशी लॉन्च व्हीकल SLV (Satellite Launch Vehicle) विकसित करना शुरू किया। SLV का उद्देश्य था भारत के पहले स्वदेशी उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुँचाना।

SLV का इतिहास: भारत का पहला अंतरिक्ष कदम

SLV को 1979 में परीक्षण के लिए तैयार किया गया। इसका पहला पूर्ण परीक्षण 10 अगस्त 1980 को हुआ और इसने Rohini RS-1 उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में पहुँचाया। यह भारत का पहला पूर्ण रूप से स्वदेशी लॉन्च व्हीकल था और अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखने में अहम साबित हुआ।

SLV की संरचना: तकनीकी विवरण

SLV चार ठोस ईंधन स्टेजेस वाला रॉकेट था। इसे आप चार जुड़े छोटे जेट इंजन वाले विमान के रूप में सोच सकते हैं, जो संयुक्त रूप से उपग्रह को कक्षा में पहुँचाने का काम करते हैं।

  • स्टेजेस: 4 ठोस ईंधन आधारित स्टेजेस
  • लंबाई: लगभग 22 मीटर
  • वजन: लगभग 17,000 किलोग्राम
  • उपग्रह क्षमता: 40 किलोग्राम तक
  • प्रमुख मिशन्स: Rohini श्रृंखला

प्रमुख मिशन्स: SLV की सफलता की कहानी

SLV का पहला सफल मिशन था Rohini RS-1 का सफल प्रक्षेपण 1980 में। इसके बाद SLV ने और भी Rohini उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया। SLV ने यह साबित किया कि भारत अब स्वदेशी रूप से उपग्रह लॉन्च करने में सक्षम है।

SLV का महत्व: भारतीय अंतरिक्ष यात्रा में मील का पत्थर

SLV ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखी। यह PSLV, GSLV और LVM3 जैसे आधुनिक रॉकेट्स की तकनीकी विरासत का पहला चरण था। SLV ने तकनीकी आत्मनिर्भरता और अंतरिक्ष में भारतीय प्रतिभा को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।

निष्कर्ष: SLV ने दिखाई भारत की अंतरिक्ष शक्ति

SLV सिर्फ एक रॉकेट नहीं था; यह भारतीय विज्ञान और अंतरिक्ष यात्रा का प्रतीक था। इसके मिशन्स ने यह साबित किया कि भारत अब अंतरिक्ष क्षेत्र में स्वावलंबी और सक्षम है।

अगले पोस्ट में हम और उसके तकनीकी सुधारों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

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