भारत के वैज्ञानिक रत्न: हरगोविंद खुराना – डीएनए कोड को समझने वाले महान वैज्ञानिक
हरगोविंद खुराना एक ऐसे वैज्ञानिक थे जिनकी खोजों ने आणविक जीवविज्ञान (Molecular Biology) की दिशा ही बदल दी। उन्होंने जीवन के सबसे सूक्ष्म रहस्य – जेनेटिक कोड (Genetic Code) – को उजागर किया और बताया कि हमारे शरीर की कोशिकाएँ कैसे प्रोटीन बनाती हैं।
उनका कार्य मानवता के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत या आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत। वे 20वीं सदी के सर्वाधिक प्रभावशाली वैज्ञानिकों में से एक माने जाते हैं।
प्रारंभिक जीवन
हरगोविंद खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922 को रायपुर गाँव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है। उनके पिता एक पटवारी (राजस्व अधिकारी) थे, जिनकी आर्थिक स्थिति सामान्य थी लेकिन शिक्षा के प्रति गहरा लगाव था।
पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटे हरगोविंद बचपन से ही पढ़ाई में अत्यंत मेधावी थे। उन्होंने सरकारी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ली और फिर लाहौर के पंजाब यूनिवर्सिटी से स्नातक और फिर एम.एससी. की डिग्री प्राप्त की।
विदेश यात्रा और डॉक्टरेट
1945 में उन्हें शैक्षणिक छात्रवृत्ति मिली और वे इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल चले गए, जहाँ से उन्होंने PhD पूरी की। उसके बाद वे स्विट्ज़रलैंड और कनाडा में शोधकार्य करते रहे।
1950 के दशक में वे कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया में कार्यरत रहे और बाद में USA के MIT (Massachusetts Institute of Technology) में प्रोफेसर बने।
वैज्ञानिक उपलब्धियाँ
- Genetic Code का रहस्य: खुराना ने यह सिद्ध किया कि DNA में उपस्थित 4 बेस (A, T, G, C) की विशिष्ट त्रिक संयोजन (triplets) यह निर्धारित करते हैं कि कौन-सा प्रोटीन बनेगा।
- Artificial Gene Synthesis: वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने कृत्रिम डीएनए (Artificial Gene) का निर्माण किया, जो आगे चलकर जेनेटिक इंजीनियरिंग और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में क्रांति बना।
- RNA की भूमिका: उन्होंने साबित किया कि mRNA और tRNA कैसे मिलकर अमीनो एसिड को प्रोटीन में बदलते हैं।
- Optogenetics और Cell Signaling: उनके आगे के शोध ने न्यूरोसाइंस और जैव चिकित्सा (Biomedical Science) को भी नया दृष्टिकोण दिया।
नोबेल पुरस्कार (1968)
हरगोविंद खुराना को 1968 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान दो अन्य वैज्ञानिकों – मार्शल निरेनबर्ग और रॉबर्ट होली – के साथ साझा रूप में मिला। यह पुरस्कार उन्हें "जीवों के जेनेटिक कोड और प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया" को स्पष्ट करने के लिए मिला।
खुराना न केवल नोबेल विजेता बने बल्कि वे अमेरिका की नागरिकता भी प्राप्त कर चुके थे, पर भारत के प्रति उनका प्रेम बना रहा।
सम्मान और पहचान
- भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित (1969)
- भारत में हरगोविंद खुराना विज्ञान पुरस्कार की शुरुआत
- उनके नाम पर अमेरिका में हरगोविंद खुराना प्रोफेसरशिप की स्थापना
- भारत और अमेरिका दोनों ने उनके योगदान को विज्ञान और मानवता के हित में सर्वोच्च माना
शोध की विशेषताएँ
खुराना के शोध में सबसे महत्वपूर्ण बात थी – विज्ञान का अनुप्रयोग मानव सेवा में। उन्होंने जेनेटिक्स की जानकारी का इस्तेमाल कैंसर, जेनेटिक रोग, और जैव चिकित्सा में सुधार के लिए किया।
उनकी खोजों से बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री का जन्म हुआ, जिससे आज इंसुलिन से लेकर वैक्सीन्स तक का उत्पादन होता है।
व्यक्तित्व और विरासत
हरगोविंद खुराना एक अत्यंत विनम्र, मेहनती और शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने कभी भी प्रसिद्धि को अपने सिर चढ़ने नहीं दिया। उनका विश्वास था कि –
"Science knows no country because knowledge belongs to humanity."
उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि सीमित संसाधनों में भी वैश्विक ऊँचाइयाँ प्राप्त की जा सकती हैं।
निधन और स्मृति
खुराना का निधन 9 नवंबर 2011 को अमेरिका में हुआ। लेकिन उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ अमर हैं। आज दुनिया भर में जेनेटिक कोड को पढ़ाने के लिए उनके सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है।
निष्कर्ष
हरगोविंद खुराना ने यह सिद्ध कर दिखाया कि विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं होता, वह मानवता की सेवा का माध्यम भी बन सकता है। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाता है कि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और वैज्ञानिक सोच से कुछ भी संभव है।
वे भारत और विश्व दोनों के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत हैं।
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