पी.एम. भार्गव: भारत में जैव-प्रौद्योगिकी के अग्रदूत और वैज्ञानिक विवेक के प्रहरी
भारत की वैज्ञानिक विरासत केवल खोजों और प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं रही है, बल्कि यह उन व्यक्तित्वों से भी समृद्ध रही है जिन्होंने विज्ञान को लोकशिक्षा, लोकतंत्र, नीति-निर्माण और सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाया। ऐसा ही एक तेजस्वी नाम है — डॉ. पुष्पा मित्र भार्गव, जिन्हें भारत में आधुनिक जैव-प्रौद्योगिकी का जनक माना जाता है।
👦 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. पी.एम. भार्गव का जन्म 22 फरवरी 1928 को अजमेर (राजस्थान) में हुआ था। वे बचपन से ही अध्ययनशील प्रवृत्ति के थे। उन्होंने वाराणसी में प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और तत्पश्चात लखनऊ विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में डॉक्टरेट (PhD) की उपाधि प्राप्त की।
🔬 वैज्ञानिक करियर और अनुसंधान
डॉ. भार्गव का वैज्ञानिक जीवन उच्च स्तरीय अनुसंधान और संस्थागत निर्माण से परिपूर्ण रहा। उन्होंने Centre for Cellular and Molecular Biology (CCMB), हैदराबाद की स्थापना 1977 में की, जो आज भारत का सबसे प्रतिष्ठित जैव-प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र है। उन्होंने एनजाइम बायोकैटालिसिस, आणविक जीवविज्ञान, डीएनए अनुक्रमण और अनुवांशिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया।
उनका शोध केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं था — वे गवर्नमेंट पॉलिसी मेकर के रूप में भी कार्य करते रहे। उन्होंने भारत सरकार को जैव-प्रौद्योगिकी नीति बनाने में दिशा दी और Department of Biotechnology (DBT) की स्थापना के पीछे मुख्य प्रेरक शक्ति रहे।
📚 लेखक, विचारक और विज्ञान के सेनापति
डॉ. भार्गव एक विलक्षण लेखक भी थे। उनकी प्रमुख पुस्तकों में शामिल हैं:
- “An Agenda for the Nation”
- “Angels, Devils and Science”
- “The Saga of Indian Science Since Independence: In a Nutshell”
इन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने भारतीय विज्ञान की उपलब्धियों, चुनौतियों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता को उजागर किया। वे धर्म आधारित छद्म विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान के अंधविश्वास और विज्ञान के राजनीतिकरण के सख्त आलोचक रहे।
🧠 वैज्ञानिक सोच और सामाजिक चेतना
वे मानते थे कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Temper) लोकतंत्र का आधार है और यह भारतीय संविधान की मूल भावना का हिस्सा होना चाहिए। उन्होंने अक्सर भारत में धर्म और अंधविश्वास के बढ़ते प्रभाव पर चेताया और विज्ञान की चेतना को आमजन तक पहुँचाने का कार्य किया। वे राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (NCSTC) के निर्माण में भी शामिल रहे।
🛡️ नैतिक विज्ञान और विरोध का साहस
2015 में जब देश में वैज्ञानिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरा हुआ, तब डॉ. भार्गव ने विरोधस्वरूप पद्म भूषण सम्मान वापस कर दिया। यह एक ऐतिहासिक कदम था जिससे यह संदेश गया कि एक वैज्ञानिक केवल प्रयोग नहीं करता, वह सामाजिक दायित्व भी निभाता है।
🏆 सम्मान और उपलब्धियाँ
- पद्म भूषण (1986)
- CSIR Lifetime Achievement Award
- INSA (Indian National Science Academy) फेलो
- साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी डेवेलपमेंट में योगदान
📢 युवाओं के लिए संदेश
डॉ. भार्गव हमेशा कहते थे: "भारत तभी प्रगति कर सकता है जब हम अपने बच्चों को प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता देंगे और उन्हें तर्क और विवेक की शक्ति से सुसज्जित करेंगे।"
🕊️ निधन और विरासत
डॉ. पी.एम. भार्गव का निधन 1 अगस्त 2017 को हुआ। उनकी वैज्ञानिक चेतना और सामाजिक प्रतिबद्धता आज भी नई पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उन्होंने विज्ञान को सत्ता का उपकरण नहीं, बल्कि समाज के सशक्तिकरण का माध्यम बनाया।
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📌 लेख: STEM Hindi टीम
📅 प्रकाशन तिथि: जुलाई 2025
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