🌿 भारत के वैज्ञानिक रत्न #2 - जगदीश चंद्र बोस

चित्र स्रोत: विकिपीडिया
👶 प्रारंभिक जीवन
जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवम्बर 1858 को बंगाल (अब बांग्लादेश) के मुंशीगंज ज़िले में हुआ था। उनके पिता भगवानचंद्र बोस एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण और डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। उन्होंने बचपन से ही बोस को भारतीय संस्कृति और विज्ञान के प्रति रुचि जगाई।
📚 शिक्षा और संघर्ष
बोस ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की और फिर इंग्लैंड जाकर कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ली। भारत लौटने के बाद वे प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में भौतिकी के प्रोफेसर बने। लेकिन शुरुआत में उन्हें नस्लभेद के कारण वेतन तक नहीं दिया गया — फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
🌿 प्रेरणादायक खोज: पौधों में जीवन
📡 वायरलेस संचार में योगदान
1895 में, बोस ने रेडियो तरंगों पर आधारित वायरलेस संचार का प्रदर्शन किया — मारकोनी से भी पहले! परंतु उन्होंने कभी पेटेंट नहीं कराया क्योंकि वे ज्ञान को मानवता के लिए मुक्त रखना चाहते थे। इस उदारता ने उन्हें वैज्ञानिक जगत में महान बना दिया।
🎖️ सम्मान और संस्थान
- 📛 'सर' की उपाधि (ब्रिटिश शासन द्वारा)
- 🏛️ बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना (1917)
- 📖 रॉयल सोसाइटी, लंदन के पहले भारतीय फेलो (1920)
🧠 प्रेरणा विद्यार्थियों के लिए
🔹 बिना संसाधनों के उन्होंने क्रांतिकारी यंत्र बनाए और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।
🔹 उनका आदर्श था — "ज्ञान को मानवता की सेवा में मुक्त रखा जाना चाहिए।"
📅 अंतिम समय
जगदीश चंद्र बोस ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों तक रिसर्च से जुड़ाव बनाए रखा और 23 नवम्बर 1937 को इस महान वैज्ञानिक का देहांत हो गया। लेकिन उनकी सोच और कार्य आज भी विज्ञान जगत में प्रेरणा का स्रोत हैं।
यह पोस्ट Science Hindi की श्रृंखला "भारत के वैज्ञानिक रत्न" का भाग है। अगली पोस्ट में पढ़ें: होमी भाभा की क्रांतिकारी विज्ञान यात्रा।
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