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डॉ. होमी जहांगीर भाभा : भारत के परमाणु युग के जनक

भारत के वैज्ञानिक रत्न श्रृंखला – भाग 2:
डॉ. होमी जहांगीर भाभा : भारत के परमाणु युग के जनक

“अगर हम विज्ञान में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं, तो हम राष्ट्र की आत्मनिर्भरता का रास्ता खोल सकते हैं।”
– डॉ. होमी जहांगीर भाभा

भारत के वैज्ञानिक इतिहास में कुछ ऐसे रत्न हैं जिन्होंने देश की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल दी। इस श्रृंखला के पहले भाग में हमने डॉ. सी. वी. रमण के बारे में जाना, और अब हम आपको ले चलते हैं उस महान वैज्ञानिक की यात्रा पर, जिनकी दृष्टि और निर्णय ने भारत को परमाणु शक्ति के पथ पर अग्रसर किया — डॉ. होमी जहांगीर भाभा.

🔬 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

डॉ. भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक संपन्न पारसी परिवार में हुआ। वे बचपन से ही असाधारण रूप से मेधावी थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बॉम्बे के कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल में हुई और फिर वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (Gonville and Caius College) गए जहाँ उन्होंने भौतिकी और गणित में विशेषज्ञता प्राप्त की।

कैम्ब्रिज में रहते हुए, उन्होंने कॉस्मिक किरणों पर गहन अध्ययन किया और क्वांटम थ्योरी के विकास में योगदान दिया। उन्होंने भाभा स्कैटरिंग की खोज की जो पोजिट्रॉन-इलेक्ट्रॉन टकरावों के अध्ययन में क्रांतिकारी सिद्ध हुई।

🏛️ भारत लौटना और विज्ञान की आधारशिला

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वे भारत लौटे और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में कार्यभार संभाला। यहीं उन्होंने भारत में एक समर्पित परमाणु अनुसंधान संस्थान की आवश्यकता महसूस की और सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट से सहायता लेकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना की।

☢️ परमाणु कार्यक्रम की नींव

1948 में, पंडित जवाहरलाल नेहरू के सहयोग से, उन्होंने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission of India) की स्थापना की और इसके पहले अध्यक्ष बने। उन्होंने भारत के लिए एक दीर्घकालिक परमाणु ऊर्जा योजना प्रस्तुत की, जिसे तीन चरणों वाले कार्यक्रम के रूप में जाना जाता है:

  • प्रथम चरण: प्राकृतिक यूरेनियम द्वारा प्रेसराइज्ड हेवी वॉटर रिएक्टर (PHWR)
  • द्वितीय चरण: फास्ट ब्रीडर रिएक्टर में प्लूटोनियम उपयोग
  • तृतीय चरण: थोरियम आधारित रिएक्टर – जो भारत की प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित था

यह योजना आज भी भारत की परमाणु नीति की रीढ़ है और इसे विश्व के सबसे महत्वाकांक्षी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों में गिना जाता है।

🏛️ भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC)

डॉ. भाभा की प्रेरणा से 1954 में ट्रॉम्बे में एक प्रमुख परमाणु संस्थान की स्थापना हुई जिसे बाद में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) नाम दिया गया। यह केंद्र भारत में परमाणु ऊर्जा, चिकित्सा, कृषि और उद्योग में परमाणु तकनीक के अनुप्रयोगों का केंद्र बना।

🛫 दुखद अंत लेकिन अमर प्रेरणा

24 जनवरी 1966 को, जब वे वियना में IAEA सम्मेलन से लौट रहे थे, उनका विमान एयर इंडिया फ्लाइट 101 फ्रांस के मोंट ब्लांक पर्वत से टकरा गया और वे इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य के घेरे में है, लेकिन उनके विचार और सपने जीवित हैं।

🎖️ सम्मान और विरासत

  • पद्म भूषण से सम्मानित (1954)
  • उनके नाम पर कई संस्थान, रिसर्च सेंटर और पुरस्कार स्थापित किए गए
  • भारतीय डाक विभाग ने 1966 में उनके सम्मान में एक विशेष डाक टिकट जारी किया
  • भारत को वैज्ञानिक दृष्टि देने वाले सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में गिने जाते हैं

🌟 निष्कर्ष: एक युग निर्माता

डॉ. होमी भाभा केवल एक वैज्ञानिक नहीं थे, वे राष्ट्र निर्माता थे। उन्होंने विज्ञान को भारत की आत्मनिर्भरता का औज़ार बनाया। उनकी दृष्टि, समर्पण और वैज्ञानिक सोच हमें यह सिखाती है कि स्वप्न सिर्फ देखे नहीं जाते, उन्हें जी भी सकते हैं — बस उनमें विश्वास और समर्पण होना चाहिए।

क्या आप जानते हैं? डॉ. भाभा ने भारत में विज्ञान को जनमानस से जोड़ने की बात कही थी और कहा था – "हमारा वैज्ञानिक विकास तभी सार्थक होगा जब वह समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे।"

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