👩🔬 डॉ. असीमा चटर्जी — विज्ञान की वह नायिका जिसने भारत को नई दिशा दी
डॉ. असीमा चटर्जी का नाम जब भी भारतीय विज्ञान की गाथा में लिया जाता है, तो गर्व और प्रेरणा दोनों का अनुभव होता है। 23 सितम्बर 1917 को कोलकाता में जन्मी यह महान वैज्ञानिक अपने क्षेत्र में अपनी स्वतंत्र सोच, दृढ़ निश्चय और मेहनत के बलबूते खड़ी हुईं। पारम्परिक ज्ञान, आयुर्वेद एवं रसायन विज्ञान को जोड़कर उन्होंने ऐसे प्रतिफल दिए, जो आज भी हमारी वैज्ञानिक विरासत में अमिट हैं।
🎓 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा की यात्रा
असीमा चटर्जी का बचपन अत्यंत जिज्ञासापूर्ण और संघर्षपूर्ण था। उस समय महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा एक दुर्लभ उपलब्धि थी। उन्होंने प्रथम चरण की शिक्षा कोलकाता के स्थानीय स्कूलों से ग्रहण की, जहाँ से स्कॉटिश चर्च कॉलेज तक उनका मार्ग प्रशस्त हुआ। यहाँ उन्होंने अपनी पहली उपाधि प्राप्त की और अपनी योग्यता साबित की।
उसके बाद वे कलकत्ता विश्वविद्यालय में दाखिला लेकर रसायन विज्ञान में गहन अध्ययन में जुट गईं। उनकी लगन और प्रतिभा के कारण, उन्हें पहली महिला के रूप में डॉक्टर ऑफ साइंस (D.Sc.) की उपाधि से सम्मानित किया गया, जो उस समय की एक अद्भुत उपलब्धि थी। इस उपाधि ने उन्हें भारतीय विज्ञान जगत में एक नई पहचान दिलाई।
🧪 शोध कार्य और कई उपलब्धियाँ
डॉ. चटर्जी का शोध मुख्य रूप से प्राकृतिक औषधियों और आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से चिकित्सकीय यौगिकों की खोज पर आधारित था। विशेष रूप से उनके द्वारा विकसित यौगिक:
- मिर्गी-रोधी दवा — पारंपरिक ज्ञान पर आधारित अतीव प्रभावी उत्पाद।
- कैंसर रोधी यौगिक — प्राकृतिक तत्वों से प्राप्त, जो जैविक रूप से कारगर सिद्ध हुए।
- मलेरिया-रोधी संश्लेषण — ग्रामीण भारत में व्यापक असर डालने वाली खोज।
- प्राकृतिक क्षारीय यौगिक — जिनका उपयोग आयुर्वेद एवं रसायन विज्ञान में माना गया।
उनके शोध परिणाम राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हुए और चिकित्सा जगत में उन्हें उच्च मान्यता मिली। उन्होंने यह साबित किया कि भारतीय जड़ी-बूटियों में अद्भुत चिकित्सीय शक्ति होती है, जिसे वैज्ञानिक रूप से समझकर रोग-प्रतिरोधक दवाओं में परिवर्तित किया जा सकता है।
🏅 सम्मान एवं प्रतिष्ठा
डॉ. असीमा चटर्जी के उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
- 1975 में पद्म भूषण से सम्मानित
- भारतीय विज्ञान कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष
- विश्व शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की वैज्ञानिक सलाहकार
- अनेक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टर की उपाधि
- उनके नाम पर कई राष्ट्रीय स्तर के शोध कार्यक्रम
इनके साथ ही उन्होंने पूरे जीवन में अनेकों युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित किया और उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधान के रास्ते पर अग्रसर किया।
🌟 प्रेरक प्रसंग
एक बार जब असीमा चटर्जी को विदेश से बड़ी परियोजना के प्रस्ताव मिले, तब भी उन्होंने उत्तर दिया कि:
"मेरा देश मेरी पहचान है। यहाँ की भूमि, यहाँ की जड़ी-बूटियाँ और परम्परा—इन्हें मैं नहीं छोड़ सकती। मेरा लक्ष्य इन्हें वैज्ञानिक शोध से जोड़ना है।"
इस दृष्टिकोण ने उन्हें स्वदेशी शोध को आगे बढ़ाने वाले वैज्ञानिकों में अग्रणी बना दिया। उनकी यह सोच आज भी विज्ञान-जगत के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
📜 जीवन के अंतिम अध्याय
डॉ. असीमा चटर्जी का निधन 1996 में हुआ, पर उनका अध्ययन, उनका विचार, और उनका योगदान आज भी वैज्ञानिक समाज में जीवंत हैं। उनके द्वारा स्थापित शोध प्रयोगशालाएं आज भी कार्यशील हैं और अनेक युवा डॉक्टरों व शोधकर्ताओं को मार्गदर्शन दे रही हैं।
🧠 विद्यार्थियों के लिए संदेश
उनके जीवन से हमें ये उपदेश मिलते हैं:
- शुरुआत मुश्किल हो सकती है, पर मन से काम करने पर राह सहज बनती है।
- देश-भक्ति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण में सामंजस्य हो सकता है।
- पत्रिकाओं या प्रतिष्ठा से बढ़कर आपके कार्य का समाज पर प्रभाव मायने रखता है।
📌 समापन विचार
डॉ. असीमा चटर्जी को हम केवल एक वैज्ञानिक के रूप में नहीं, बल्कि देशभक्ति की मिशाल और नैतिकता की उत्कृष्टता के ध्वजवाहक के रूप में याद करते हैं। उनके अनुसंधान ने आयुर्वेद को वैज्ञानिक पहचान दी और हमें यह सिखाया कि विषय चाहे कोई भी हो, समर्पण, परिश्रम और समय देने से असाधारण उपलब्धियाँ हासिल की जा सकती हैं।
यह लेख “भारत के 50 प्रमुख वैज्ञानिक” श्रृंखला का हमारे प्रस्तुतकर्ता STEMHindi.blogspot.com द्वारा प्रकाशित अंश है।
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